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Devathuna Ekadashi Vrat Katha: देवउठनी एकादशी व्रत कथा

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देवउठनी एकादशी व्रत कथा: एक विस्तृत व्याख्या

एकादशी का महत्व और राज्य की परंपरा
एकादशी को हिंदू धर्म में अत्यंत पवित्र माना गया है। इस दिन उपवास और प्रभु की आराधना का विशेष महत्व होता है। कथा की पृष्ठभूमि एक ऐसे राज्य की है जहां यह परंपरा थी कि एकादशी के दिन न केवल प्रजा बल्कि पशु भी अन्न ग्रहण नहीं करते थे। पूरे राज्य में यह व्रत गहरी श्रद्धा और अनुशासन के साथ मनाया जाता था। राजा स्वयं इस नियम का पालन करने में अग्रणी थे और जनता के लिए आदर्श थे।

राजा के इस कर्तव्यनिष्ठ और धर्मपरायण व्यवहार ने भगवान विष्णु का ध्यान आकर्षित किया। उन्होंने सोचा कि राजा की सच्ची निष्ठा की परीक्षा ली जाए। इस प्रकार, भगवान ने एक योजना बनाई।

भगवान विष्णु का सुंदरी रूप धारण करना

भगवान विष्णु ने अपनी परीक्षा योजना के तहत एक सुंदर स्त्री का रूप धारण किया। वह स्त्री अत्यंत आकर्षक और भव्य रूप से सज्जित थी, लेकिन उसके चेहरे पर एक गहरी उदासी झलक रही थी। वह राज्य की मुख्य सड़क के किनारे एक पेड़ के नीचे बैठ गई।

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राजा की सुंदरी से भेंट

राजा अपने दैनिक कर्तव्यों का निरीक्षण करते हुए वहां पहुंचे। उन्होंने सड़क किनारे बैठी स्त्री को देखा। उसकी सुंदरता और निराशा ने राजा को उसके पास जाने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने उससे वहां बैठने का कारण पूछा। स्त्री ने स्वयं को बेसहारा और असहाय बताया।

राजा का मन दया और आकर्षण से भर गया। उन्होंने उसे अपनी रानी बनने और महल में रहने का प्रस्ताव दिया।

सुंदरी की शर्तें और राजा की सहमति

स्त्री ने राजा के प्रस्ताव को स्वीकार करने से पहले शर्त रखी। उसने कहा कि वह तभी रानी बनेगी जब उसे पूरे राज्य का अधिकार मिलेगा। इसके अलावा, राजा को वह भोजन करना होगा जो वह बनाएगी।
राजा, उसकी सुंदरता और करुणा से प्रभावित होकर, इन शर्तों को मानने के लिए तैयार हो गए।

सुंदरी का आदेश: परंपरा को तोड़ने की शुरुआत

सुंदरी ने अगले दिन एकादशी के दिन कुछ ऐसा करने का आदेश दिया जो राज्य की परंपराओं के विरुद्ध था। उसने बाजारों में अन्न बेचने का आदेश जारी कर दिया। यह पहली बार था जब एकादशी के दिन राज्य में अन्न उपलब्ध कराया गया।

इसके साथ ही, उसने रसोई में मांसाहार भोजन बनवाकर राजा को परोसा। यह कार्य न केवल एकादशी की परंपराओं के खिलाफ था, बल्कि राज्य के धर्म और संस्कृति को भी चुनौती देता था।

राजा का धर्म संकट

राजा ने मांसाहार भोजन करने से स्पष्ट इनकार कर दिया। उन्होंने कहा कि एकादशी के व्रत में केवल फलाहार ही ग्रहण किया जा सकता है। लेकिन सुंदरी ने अपनी शर्त याद दिलाई। उसने चेतावनी दी कि यदि राजा ने उसका भोजन नहीं खाया, तो वह बड़े राजकुमार का सिर धड़ से अलग कर देगी।

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यह स्थिति राजा के लिए अत्यंत कठिन थी। धर्म और परिवार के बीच फंसे राजा को समझ नहीं आ रहा था कि क्या किया जाए।

धर्म की रक्षा के लिए बड़ी रानी का बलिदान

राजा ने अपनी इस दुविधा को बड़ी रानी के सामने रखा। बड़ी रानी, जो स्वयं धर्मपरायण और नीतिज्ञ थीं, ने राजा से कहा कि धर्म की रक्षा सर्वोपरि है। उन्होंने अपने बेटे का सिर कटवाने के लिए सहमति दे दी।

राजा अत्यंत दुखी और हताश हो गए, लेकिन धर्म का पालन करने के लिए तैयार हो गए। उन्होंने सुंदरी की शर्त नहीं मानी और अपने पुत्र के बलिदान के लिए सहमति दे दी।

भगवान विष्णु का असली रूप प्रकट होना

जब भगवान विष्णु ने देखा कि राजा धर्म की रक्षा के लिए अपने पुत्र के प्राणों का बलिदान करने को तैयार हैं, तो वे अत्यंत प्रसन्न हुए। उन्होंने अपने असली रूप में प्रकट होकर राजा को दर्शन दिए।

भगवान विष्णु ने राजा की धर्मनिष्ठा और सत्य पर अडिग रहने के गुण की प्रशंसा की। उन्होंने राजा से वरदान मांगने को कहा।

वरदान और मोक्ष की प्राप्ति

राजा ने भगवान विष्णु को धन्यवाद दिया और प्रार्थना की कि उनका जीवन धर्ममय रहे और मृत्यु के बाद वे मोक्ष को प्राप्त कर सकें। भगवान विष्णु ने राजा को आशीर्वाद दिया और मृत्यु के पश्चात बैकुंठ लोक भेजने का वचन दिया।

कथा से प्राप्त शिक्षा

इस कथा में गहरी सीख छिपी है। यह दर्शाती है कि धर्म का पालन किसी भी परिस्थिति में किया जाना चाहिए। चाहे कितनी भी बड़ी परीक्षा क्यों न आए, धर्म का पथ कभी नहीं छोड़ना चाहिए।

देवउठनी एकादशी का व्रत हमें न केवल शारीरिक तपस्या सिखाता है, बल्कि मानसिक और आध्यात्मिक दृढ़ता का भी संदेश देता है। यह व्रत पापों का नाश करता है और मोक्ष का द्वार खोलता है।

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Eleanor Hayes

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